जाने कितने ख्वाभ
जले होंगे नैन में
बनके सुर्मोसी वह राख
सजे होंगे नैन में
अक्सर धरते हैं
नज़र जब लहून आयें
हमने थो देखी हैं लहून को
सिम्थ्ते हुवे इन नैन मैं
सडकों पे रहते थे जब हम
हर भाग कि शिक़ायत ते जब हम
न जाने कैसे बस जाता
वह चांद इन नैन में
लगता हैं फिर सुबह होगी
अपनी भी अब कोई जुबह होगी
सदा जिनकी वफ़ा सी हैं
लायेंगे उन्हें अपनी नैन में
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